Sunday, June 16, 2013

शब्द ही तो हैं .....



हमें और कितना
तोड़ोगे -
मरोड़ोगे-
हमारी सहजता को द्विअर्थी जामा पहना-
और कितना तिरस्कृत करोगे ...!

यूँ तो एक अबोध बालक भी
अपनी हर बात कह लेता है
एक मूक जानवर
अपनी हर ज़रुरत जता देता है,
फिर शब्दों की क्या दरकार...!

हमारी उत्पत्ति, तुम्हारे लिए ही हुई ...
विचारों को बांटने के लिए-
अपनी बात समझाने के लिए
एक सभ्य समाज के निर्माण के लिए
लेकिन तुमने -
हमारा दुरूपयोग किया..!
हमसे अपना वर्चस्व स्थापित कर
हमीं पर लांछन गढ़ दिया -
कभी लोगों को बरगलाया
झूठे वादों में उन्हें उलझाया
और अर्थों का अनर्थ कर डाला.
जानते थे प्यार की ताक़त को
तुमने फिर भी ज़हर फैलाया
मनों में.....  
सीमाओं पर उसे बोया
और हमको परास्त किया ...!

सुनो ...
अब भी मानो
हमें पहचानो
हम कुछ भी कर सकते हैं
हर ज़ुल्म से दो हाथ कर सकते हैं -
हमें बेचारा ...कमज़ोर, न समझना
हम सियासत का रुख बदल सकते हैं ...!!!

         


19 comments:

  1. सुन्दर ...सुदृढ़ अभिव्यक्ति सरस जी ....!!

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  2. हर ज़ुल्म से दो हाथ कर सकते हैं -
    हमें बेचारा ...कमज़ोर, न समझना
    हम सियासत का रुख बदल सकते हैं ...!!!

    बहुत सुंदर लाजबाब प्रस्तुति,,,

    RECENT POST: जिन्दगी,

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  3. सच है ..शब्द तो हैं हीं, उनके भाव समझना हमारा काम है. बहुत सुन्दर बात कही है .

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  4. हम कुछ भी कर सकते हैं
    -----------
    सच...

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  5. आपकी यह रचना कल मंगलवार (18 -06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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    1. बहुत बहुत आभार अरुण..

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  6. शब्दों की व्यथा कहें या फिर उनकी ताकत ....बहुत खूबसूरती से व्यक्त की है
    सरस जी आपने .....बधाई...!

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  7. कोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .....

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  8. सच है इन शब्दों की ताकत को समझ के इनका इस्तिक्बाल करना चाहिए ...
    ये चाहें तो आग भी लगा सकते हैं ...

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  9. सुनो ...
    अब भी मानो
    हमें पहचानो
    हम कुछ भी कर सकते हैं
    हर ज़ुल्म से दो हाथ कर सकते हैं -
    हमें बेचारा ...कमज़ोर, न समझना
    हम सियासत का रुख बदल सकते हैं .

    अंतर्मन की सीधी सच्ची बात

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  10. शब्दों की व्यथा का शब्दों से ही किया सुन्दर चित्रण आपने ....
    काश!!शब्दों के दर्द को सियासत के गलियारे में घूमते लोग समझ पाते....

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  11. शब्दों पर आए संकट को आपने सुंदर अभिव्यक्ति दी। आभार

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  12. शब्द को ब्रह्म कहा गया है .देखा जाय तो सारा ब्रह्मांड इन्हीं में समा जाता है.और तीर तलवार तथा तोप के गोलों से भी जो काम नहीं होता ,वह शब्दों के द्वारा संभव हो जाता है .
    बस ज़रूरत है समझ कर उनका उपयोग करने की !

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  13. वाह.......बहुत खुबसूरत।

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  14. आपने लिखा....हमने पढ़ा
    और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए आज 19/06/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    आप भी देख लीजिए एक नज़र ....
    धन्यवाद!

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    Replies
    1. इस योग्य समझने के लिए बहुत बहुत आभार यशवंत

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  15. सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति।।।

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  16. "यूँ तो एक अबोध बालक भी
    अपनी हर बात कह लेता है
    एक मूक जानवर
    अपनी हर ज़रुरत जता देता है,
    फिर शब्दों की क्या दरकार...|"
    लाजवाब रचना...बहुत बहुत बधाई...

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