Tuesday, August 27, 2013

अलौकिक प्रेम



राधा के महावरी पांवों को-
माधवने माथे धारा था
तब रुक्मिणी औए सत्यभामा से भी
ऊँचा स्थान दे डाला था -
राधा फिर भी आशंकित सी
कान्हा का प्रेम परखती थी -
जबकि कान्हा ने भक्ति में -
अपना सर्वस्व दे डाला था
है भक्तों को पाना मुझको
तो राधा नाम का स्मरण करें -
भक्ति होगी फलदायक तब
मुझसे पहले उसे नमन करें -
जिसको कहती निर्मोही वह
उसने यह वचन निभाया था -
कान्हा से पहले भक्तों ने
राधा का नाम पुकारा था .
जिस प्रकार सूर्य है कांतिहीन
जब किरणें पास नहीं उसके -
वैसे माधव अस्तित्वहीन
जब राधा साथ न थी उनके
इस दैवी निश्छल प्रेम का अर्थ
भक्तों से सदा अनजाना था -
इस अन्तरंग शक्ति को अपनी
माधवने सर्वस्व दे डाला था .




Monday, August 12, 2013

क्षणिकाएं - (५)



बे वजूद रिश्ते

न जाने कितने रिश्ते
अनाम रह जाते हैं
जीते हैं...बिना वजूद के
यादों में-
टंगे रहते हैं दीवारों पर , तस्वीरों की भीड़ में -
मरते नहीं कभी
न कभी ख़त्म होते हैं
बस , कभी कभी
किसी आह....
किसी सिसकी.....
या कोरों में ठिठकी
नमी में सांस ले लेते हैं
यदा कदा ..!!!!

किरचें

अभी अभी कुछ दरका
पर आवाज़ नहीं हुई
मैंने टुकड़े बुहार दिए
लेकिन कुछ किरचें
दरारों..
अनदेखे कोनों में छिपी रह गयीं -
जो अचक्के में भेदकर
लहू लुहान कर गयीं
भीतर तक..!!!!

Monday, August 5, 2013

लफ्ज़ -



लफ्ज़ तनहा नहीं होते
किसी न किसी एहसास से जुड़े रहते हैं हरदम
कभी छिपी होतीं हैं सरगोशियाँ
कुछ पाक़ लम्हों की
कभी वाबस्ता होती हैं यादें
मौसमी फुहारों की,
जब भीगे थे तन मन तेज़ बौछारों में
और एहसासों की जुम्बिश से
सिहर उठे थे लफ्ज़..!!

लफ्ज़ थिरके भी थे ...
जब ऊँची ऊँची पींगों के साथ
झरते थे गीत सावन के -
और लफ़्ज़ों ने ओढ़ ली थी मायूसी
जब बेवजह पलटकर तुम चले गए थे
उन एहसासों को रौंद .....

आज भी सहमे से लफ्ज़ ताकते हैं
अपने खोहों से -
शायद कोई ख़ुशी इस राह से फिर गुज़रे
और उन्हें अपनी खोई आवाज़ मिल जाये !!!



Sunday, August 4, 2013

शतरंज



कितना खूबसूरत खेल,
सबकी परिधि तय-
सबकी चालें परिभाषित-
ऊंट टेढ़ा चलता है-
हाथी सीधा-
घोड़ा ढाई घर
और प्यादे की छलांग बहुत छोटी
सिर्फ एक खाने भर की
और शातिर दिमाग इन्ही चालों से
तय करते हैं
अंजाम खेल का ..!
काश ! यह खेल तक ही सीमित रहता ..
लेकिन अब
यह जीवन शैली बन गया है -
और जीते जागते इंसान
बन गए हैं मोहरें -
सत्ता करती है सुनिश्चित
किसे हाथी बनाना है
और किसे ऊंट या घोडा...
और आम आदमी
उनकी चालों से बेखबर
उनकी बिछायी बिसात पर
उनकी शै और मात का बायस बन जाता है ...!!!!